What is caste census? Let us know…who will benefit from this?
आज देश मे गूंज रहा है जातिगत जनगणना…विपक्षी दलों का कहना कि जातिगत जनगणना होनी चाहिए।कुछ राजनीतिक दल इसके पक्ष में नही हैं।
दरअसल जातिगत जनगणना हर दस साल बाद जनगणना कराई जाती है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर सरकार को विकास योजनाएं तैयार करने में मदद मिलती है। जातिगत जनगणना के तहत इस दौरान लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाती है। इससे पता चलता है कि देश में किस जाति के कितने लोग रहते है।सीधे शब्दों में कहें तो जाति के आधार पर लोगों की गणना करना ही जातीय जनगणना होता है।
बिहार प्रदेश में जातिगत जनगणना का सर्वे जारी हो गया है। बिहार जरिगत सर्वे जारी करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। बिहार के बाद अब देश भर में इसकी मांग में तेजी आई है। देश के सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस ने भी संसद में इस मुद्दे को उठाया है।आपको बता दें कि जातिगत जनगणना का मुद्दा नया नहीं है, बल्कि लंबे समय से इसकी मांग हो रही है। लेकिन चुनाव के नजदीक आते ही इसकी मांग जोर पकड़ने लगती है। विपक्ष में जो भी दल होता है, वह जातिगत जनगणना की मांग उठाता है।
कब हुई थी जाति जनगणना
भारत में आखिरी बार जाति के आधार पर जनगणना ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1931 में हुई थी। इसके बाद 1941 में भी जातिगत जनगणना हुई, लेकिन इसके आंकड़े पेश नहीं किए गए थे। अगली जनगणना 1951 में हुई लेकिन तब तक देश आजाद हो चुका था और आजादी के बाद इस जनगणना में सिर्फ अनुसूचित जातियों और जनजातियों को ही गिना गया। मतलब देश की आजादी के बाद साल 1951 में अंग्रेजों की दी हुई जातिगत जनगणना की नीति में बदलाव कर दिया गया, जो साल 2011 में की गई आखिरी जनगणना तक जारी रहा।
जातिगत जनगणना का लाभ व नुकसान
जातिगत जनगणना के समर्थकों के अनुसार पिछड़ेपन का पता चल सकेगा।आंकड़ा पता चलने से पिछड़ी जातियों को आरक्षण का फायदा देकर उन्हें मजबूत बनाया जा सकता है। जातीय जनगणना से किसी भी जाति की आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की स्थिति का पता चल पाएगा। इससे योजनाएं बनाने में आसानी होगी।
वही जिस समाज की आबादी घट रही होगी, उस समाज के लोग परिवार नियोजन से दूरी अपना सकते हैं। सामाजिक ताना बाना बिगड़ने का खतरा भी है। साल 1951 में तब के गृह मंत्री सरदार पटेल ने भी इसके प्रस्ताव को खारिज किया था।ब्रिटिश सरकार और आजाद भारत की सरकारें भी इस मांग को टालती रही हैं।